अनोखे
तूफ़ान आँसू आए तो
थे आँखों में मेरी
मगर आरिजों पै ढल न सके इक पल
शायद जज़्बात का तूफ़ान इतना तेज़ न था
ज़िंदगी की उदास शामों के साये
इक उम्र साथ रह कर सपोश हो गए
शायद हालात का तूफ़ान इतना तेज़ न था
बरबादियों ने यहाँ शिरकत तो की थी
लेकिन अजनबियों की तरह चली गईं
शायद मुलाक़ात का तूफ़ान इतना
तेज़ न था
हर पल मुखाबिर होता चला गया
मगर मेरे पास हो कोई राज़ था ही नहीं
शायद नदामात का तूफ़ान इतना तेज़ न था
इंसाफ़ की किरनें मुब्तिला रही मुझ में
पर दुनिया कहीं और ढूँढ़ती रही खुद को
शायद खिलाफ़ात का तुफ़ान इतना तेज़ न था
७ अप्रैल २००८
|