अनुभूति में
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आत्मविरोध
यह सारा ब्रह्मांड मेरा है
आकाश से उतर कर
इस महाद्वीप पर आया हूँ
महाद्वीप की विभक्ति हुई
तो इस देश का बलिहारी बना
भूमिपुत्र होकर
इस प्रांत से भी आ जुड़ा
और चलता हुआ कहलाया
इस नगर का एक सभ्य नागरिक
ताकि रह सकूँ किसी गली के
नुक्कड़ वाले मकान में
परिवार आ जुड़ा
तो सिमट कर बैठ गया एक कमरे में
मेरी विशालता कहाँ से कहाँ आ गई
किंतु खोजी मन कहीं और भटक गया
एकांत मन अचानक
हाथ में माचिस लिए
किसी सिगरेट को ढूँढ़ता है
और सहसा विचार उपजता है
सिगरेट जलाने से पहले
इस माचिस की तीली के साथ
यह सारा घर भी जलाया जा सकता है
और मेरा ब्रह्मांड भी अपने आप जल सकता है
किंतु मैं राख होकर फिर कहाँ
जाऊँगा
तालाब नदी या अथाह समुद्र
इस नीले आकाश के नीचे
हाथ बाँधे परिक्रमा कर रहे हैं
मुझे पाने की या मुझमें समाने की
मैं दुविधा में मग्न
मेरी धरती मेरा गगन
क्या निर्णय दू
या
क्या निर्णय लूँ
९ जून २००६
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