नौकरी का
विज्ञापन
मेरा लंबा तडंगा सा बेकार
बेटा,
जो था आठवाँ फेल,
आवारा साथियों के साथ खेलता रहता था,
आवारगी के खेल।
मेरे पास आया,
बड़े दिनों बाद मेरे सामने पड़कर मुस्कराया,
ज़ुबाँ में चाशनी भरकर बोला,
बांदा जाने का किराया-ख़र्चा चाहिए।
मैंने व्यंग्यपूर्ण टोन में
प्रश्न किया,
पैसे क्या पीपल के पेड़ से टपकते हैं बेटा?
वह पहली बार शांत रहकर बोला,
वहाँ नौकरी करूँगा, आप की पाई-पाई चुका दूँगा।
मैं मुँह फाड़कर उसे देखने
लगा,
फिर बोला,
'तेरे फ़र्स्ट क्लास एम.ए. पास भाई को भी
नौकरी मिली है,
जो तुझको मिलेगी?'
वह विश्वासपूर्वक बोला,
'यह नौकरी ख़ास हम जैसों के लिए है,
मुझे अवश्य मिलेगी,
न मानिए तो विज्ञापन पढ़ लीजिए।'
और यह कहते हुए १३ अप्रैल का हिंदुस्तान
मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैं विस्मित होकर पढ़ने लगा-
'ददुआ पटेल, ठोकिया मल्लाह एवं मुन्नीलाल यादव गिरोह में विशेष
भर्ती अभियान- हट्टे-कट्टे बेकार नौजवानों को सुनहरा मौका,
वेतन- ५००० रुपए प्रतिमाह एवं प्रत्येक अभियान की सफलतानुसार
बोनस, योग्यता- मारपीट, लूट, कत्ल, बलात्कार आदि में निपुणता,
परीक्षा के विषय- बंदूक-रायफिल चलाने का ज्ञान एवं २० किलो
वज़न लेकर जंगल में दो मील बिना रुके दौड़, वरीयता- अनपढ़,
थर्ड क्लास, पिछड़ा वर्ग एवं सज़ायाफ्ता को वरीयता परंतु कोई
आरक्षण नहीं।'
फिर अंडरलाइन करके लिखा था,
'गिरोह के सदस्य के रूप में स्थायी नौकरी करने में असमर्थता हो
तो गिरोह से बाहर रहकर पकड़ करवाने, मध्यस्थ बनकर फिरौती वसूल
कराने, गिरोह के ठहरने का प्रबंध कराने, एवं पुलिस की
गतिविधियों की सूचना देने की पार्ट-टाइम नौकरी करने का विकल्प
भी
उपलब्ध है।'
विज्ञापन पढ़कर मुझे आशा
बँधी,
कि चलो अब मेरे इस बेटे का भी कल्याण हो जाएगा,
परंतु मैं अपने बेटे की नालायकी पर इतना आश्वस्त था
कि फिर भी शंकित होकर पूछने लगा,
'पर तू तो न पिछड़े वर्ग का है और न अभी तक सज़ायाफ़्ता है?'
इस पर बेटा बोला,
'धीरज क्यों खोते हैं? आगे का समाचार तो पढ़िए।'
लिखा था, 'वैसे तो तीनों गिरोहों में रिक्तियाँ चल रहीं हैं,
परंतु ठोकिया का बहुत बड़ा एक्सपैंशन प्लान है,
अत: ददुआ गिरोह में काम करने का अवसर मिले या न मिले,
ठोकिया के यहाँ नौकरी पक्की समझें।'
मुझे लगा कि यह तो ऐसे हुआ कि
पी.सी.एस. में नहीं आए,
तो नायब तहसीलदार ही बन गए।
अत: मैं गंभीर होकर बोला, 'बेटा तू पागल है।
अगर लोगों के सीने में गोली ही ठोंकनी है,
तो ठोकिया जैसे छोटे गिरोह में शामिल होना तो
सरासर हिमाकत है।
अरे यहीं लखनऊ में दस-बीस को
ठोंक दे,
बस मंत्रियों की निगाह में चढ़ जाएगा,
वे स्वयं तुझे अपनी पार्टी में मिलाने को
आतुर हो जाएँगे,
अपराध करते समय खतरे से बचाने हेतु
तेरी सुरक्षा में पुलिस
लगाएँगे।
इस प्रकार साल दो साल की समाज सेवा के बाद,
बूथ-कैप्चरिंग तकनीक का समुचित उपयोग कर
तू माननीय बन जाएगा।'
२४ जून २००६
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