हौट-ब्लोअर
माना कि मगरिब मे गुरूब होता
सूरज,
बिखेरता है फ़िज़ा में हज़ार रंग,
पर पूजता नहीं अंधेरे में जाते सूरज को कोई,
उरूज सूरज ही सबको अपना नसीब लगता है।
नेताओं की करतूतों की कितनी ही बुराई करें वोटर,
पर उम्मीदवार अपनी कौम का ही करीब लगता है।
माना कि रिश्वत को सब बुरा
कहते हैं,
सुबू-शाम घूसखूरों को बद्दु्आ करते हैं,
फिर भी हर कुँआरी लड़की के बाप को,
घूसखोर दामाद ही चश्म का नूर लगता है।
अवाम की ख़िदमत में जुटा हाकिम बेवकूफ़,
नेताओं की चापलूसी में लगा बशऊर लगता है।
माना कि नदी जब होती है सैलाब
पर,
उसे तरस नहीं आता है टूटते कगार पर,
फिर भी कगार ही थामता है दरिया का वजूद,
कगार न हो, तो वह झील में बदलने लगता है।
जानता हूँ, आप का शौक मेरा दिल रौंदना है,
नादां तब भी, आपको देखकर मचलने लगता है।
माना कि सूरज में तपिश है
बहुत,
लम्हें में ज़मी को खाक करने की है कुव्वत,
पर माशूक का सूरज-सा दमकता चेहरा,
हर आशिक दिल को मानसरोवर लगता है।
जाने क्यों माशूक जून में हिल स्टेशन,
और जनवरी में हौट-ब्लोअर लगता है? |