लाइलाज मर्ज़
डॉ. राम अवध वर्मा के नाम का
बोर्ड
एक गाँव की दुकान पर,
भेंगा-सा तिरछा टंगा था,
मन में शंका तो थी, पर मैं घुस गया कोठरी के अंदर,
भला मरता क्या न करता?
छोकरे से एक डाक्टर कुर्सी पर
ऊँघ रहे थे, हड़बड़ाए,
फिर बोले क्या हुआ, क्या हुआ?
मैंने कहा, बचाइए, त्रस्त हैं, दस-दस मिनट पर दस्त हैं,
आधा ज़िंदा हूँ, आधा मरा हुआ।
डाक्टर राम अवध मन ही मन
मुस्कराए, बोले बैठिए,
अभी करता हूँ आप की दवा।
उन्होंने एक लंबी-सी पिचकारी भर इंजेक्शन जो लगाया,
तो निकल गई अपनी हवा।
दस्त तो ऐसे ठीक हुए कि अगले
दस दिन तक न हुए,
पर मैं बोलने लगा हिनहिनाता हुआ।
शहर के डाक्टर भी नया मर्ज़ न समझ सके, बोले बताओ,
इंजेक्शन का नाम, डाक्टर की योग्यता।
गाँव में फिर जाकर पूछने पर
बताया कि अरे राम अवध,
वह तो घोड़ों के कालेज में पढ़ा;
नीचे से भर्ती हुआ था, दो साल फेल होकर घर लौटा,
टाँग लिया डाक्टर का बोर्ड एक बड़ा।
पर डाक्टर अच्छा बन गया है,
दस-पाँच मार कर,
हर मर्ज की दवा सुई में देता है,
बस कभी-कभी कालेज के दिनों की याद में खोकर,
दवा की मिकदार बढ़ा देता है।
शहर में लौटकर डाक्टर को जब
हाल बताया,
तो वह धीरे से मुस्कराया, सूखे मन से बोला,
दुख है तब तो आप का मर्ज़ लाइलाज है।
हिनहिनायेंगे और रहेगा घोड़ों-सा मिज़ाज़ है।
पर इस मर्ज़ में भी एक सिलवर
लाइनिंग है,
आपके भाग्य में डाइनिंग और वाइनिंग है।
आपका सितारा अब पूर्णत: शाइनिंग है,
मंत्री पद है और डिफेंस या माइनिंग है।
मैंने पूछा आप डाक्टर हैं या
भविष्य वक्ता?
बोले, डाक्टर हूँ पर मेरा अनुभव है सच्चा।
पहले भी इस गाँव से आया था एक हिनहिनाता,
ठीक तो न हुआ पर बन गया बहुत बड़ा नेता।
रोज़-रोज़ सुबह, दोपहर, शाम
हिनहिनाता है,
सब लोग खूब सुनते हैं जब घोड़ा सुनाता है।
हर चुनाव में जीतकर बड़ा मंत्री बन जाता है,
प्रदेश की दौलत, देश की लाज बेच खाता है।
पर जनता भी कहाँ आदमी की बात
सुनती है,
उतनी ही खुश रहती जितनी खाती दुलत्ती है।
आपके भविष्य की तुलना में, बीमारी बड़ी सस्ती है,
हिनहिनाइए, नेता बन जाइए, मस्ती ही मस्ती है।
९ मई २००६
|