अनुभूति में
महेशचंद्र द्विवेदी
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ब्रह्मांड
में तारतम्य
यद्यपि अल्बर्ट आइन्सटाइन
की यह मान्यता,
कि संसार की कोई वस्तु
शून्य में प्रकाश की गति-
अर्थात तीस करोड़ मीटर प्रति सेकन्ड-
से अधिक गति से नहीं दौड़ सकती है,
उनके विश्वप्रसिद्ध सापेक्षता के सिद्धांत,
एवं पदार्थ के ऊर्जा में विघटन
की खोज का मूलाधार है;
तथापि हर अन्वेषी मानव को
उनकी तारतम्यहीन इस मान्यता पर
शंका का गम्भीर आधार है.
शंका इसलिये कि
आइन्स्टाइन ने इस मान्यता का
स्वयं कोई आधार नहीं दिया है,
इसे बस एक ’गॊस्पेल ट्रुथ’ मान लिया है;
शंका इसलिये भी कि
इससे ’तीस करोड़ मीटर प्रति सेकन्ड’
की गति को एक
ऐसी तारतम्यखन्डक मान्यता प्राप्त हो जाती है
कि इस पर पहुँचते ही हर वस्तु
अनंत भार की बन जाती है
और इसे पार कर जाने पर
’विपरीत-संसार’ में पहुंच जाती है-
जहां इस संसार के
हर भौतिक नियम को झुठलाती है
और भविष्य से भूत की दिशा में
चलने लग जाती है
सम्भव है कि तीस करोड़ मीटर की गति पर
हर पदार्थ के प्रत्यक्ष स्वरूप का
अप्रत्यक्ष ऊर्जा में हो जाता हो विघटन
पर चाहे मन्थर गति से ही हो
उससे कम गति पर भी होता है
पदार्थ एवं ऊर्जा का परस्पर विलयन
जैसे भोजन से यदि बनता है रक्त
तो साथ में बनते हैं
ताप तथा विद्युत-तरन्गों की पुलकन
सीमा में बंधा हुआ लगते हुए भी
संसार मूलतः अनादि, अनन्त और असीम है
एवं अनादि, असीम और अनन्त का
आवश्यक गुण होता है अनवरत तारतम्य
अतः आइंस्टाइन की
प्रकाश-गति की सीमा की मान्यता
न विग्यान है और न है दर्शन
देखने में खन्डित लगता ब्रह्मांड
वास्तव में है अनवरत, जहाँ
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष का विलयन-
प्रकाश की गति की सीमा में बँधी
कोई क्षत शृंखला न होकर,
है एक अविरल तारतम्य
५ नवंबर २०१२ |