अनुभूति में
महेशचंद्र द्विवेदी
की
रचनाएँ -
नई रचनाएँ-
अनस्तित्व का सत्यापन
अवसाद
तुम
छंदमुक्त में
आतुर आकाश
ऊर्जा का स्पंदन
एंटी वर्ल्ड
एक नास्तिक का स्वत्व
गणतंत्र की आत्मा
चिता का प्रकाश
जब जब आएगा सावन
तेरा यह रोम रोम
नौकरी का विज्ञापन
प्रवासी चिन्ता
पंछी की परछाँई
ब्रह्मांड में तारतम्य
भीमबैठका के भित्तिचित्र
मैं वह बादल हूँ
युवमन
यह मन क्या है
वृत्तस्वरूप
संसार
शरत की कथाओं की तरह
शापित सा मन
हास्य व्यंग्य में
मोनिका को रोना क्यों आता है
लाइलाज मर्ज़
हॉट ब्लोअर
डेंगू
हाकिम सस्पेंशन में है
संकलन में
होली है-होली
पर रक्षाबंधन |
|
चिता का
प्रकाश
अंधकार
सुनामी सा बिन बताये नहीं आया था
काली आँधी के आगमन-पूर्व
पहले आकाश हुआ था म्लान -
सिंह की आहट पर मृगछौने सा
भयातुर और शांत
फिर पश्चिम दिशा से आहिस्ता-आहिस्ता
आने लगी थी कालिमा -
लोमहर्षक, पर अंतस से अशांत
बढ़ती रही थी घेरने मुझे चंहुदिश -
पहले धीरे-धीरे, फिर वेगपूर्ण दुर्दांत
चाहे धीरे धीरे बढ़ा था तमस
पर था ऐसा अप्रत्याशित
कि मै मृगछौने सा था कम्पित
मैने बंद कर लिये थे
घर के सब खिड़की दरवाज़े -
अंधकार को बाहर ही रखने को सीमित
परंतु वह गोह की तरह
चिपक गया था खिड़की-दरवाज़ों पर
और छाप लिये थे सभी शीशे और सुराख
फिर सुरसा के मुख की भांति
करने लगा था स्वयं को विराट
रोक लिया था वायु का मेरे घर में प्रवेश
चुरा लिया था मेरा समस्त प्रकाश
व्याकुल मृगछौने की भाँति
मैने बंद कर लिये थे नाक और आँख
जब घुटने लगा था दम
तो घबरा कर खोल दिया था
एक दरवाज़े के बीच का सुराख
घुस गया था तब
सम्पूर्ण वेग से तमस
मेरे घर में, मेरे शरीर में
और मेरे हृदय में गया था बस
अब तुम कहते हो
कि प्रकाश की एक लौ जलाओ,
और इस अंधकार के बाहर आ जाओ
तुम नहीं समझते
कि हृत्तम नहीं मिटता है सयास
शव को प्रज्ज्वलित तो करता है
जीवित कदापि नहीं कर सकता
चिता का प्रकाश
५ नवंबर २०१२ |