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चिता का प्रकाश

अंधकार
सुनामी सा बिन बताये नहीं आया था
काली आँधी के आगमन-पूर्व
पहले आकाश हुआ था म्लान -
सिंह की आहट पर मृगछौने सा
भयातुर और शांत
फिर पश्चिम दिशा से आहिस्ता-आहिस्ता
आने लगी थी कालिमा -
लोमहर्षक, पर अंतस से अशांत
बढ़ती रही थी घेरने मुझे चंहुदिश -
पहले धीरे-धीरे, फिर वेगपूर्ण दुर्दांत

चाहे धीरे धीरे बढ़ा था तमस
पर था ऐसा अप्रत्याशित
कि मै मृगछौने सा था कम्पित
मैने बंद कर लिये थे
घर के सब खिड़की दरवाज़े -
अंधकार को बाहर ही रखने को सीमित
परंतु वह गोह की तरह
चिपक गया था खिड़की-दरवाज़ों पर
और छाप लिये थे सभी शीशे और सुराख
फिर सुरसा के मुख की भांति
करने लगा था स्वयं को विराट
रोक लिया था वायु का मेरे घर में प्रवेश
चुरा लिया था मेरा समस्त प्रकाश

व्याकुल मृगछौने की भाँति
मैने बंद कर लिये थे नाक और आँख
जब घुटने लगा था दम
तो घबरा कर खोल दिया था
एक दरवाज़े के बीच का सुराख
घुस गया था तब
सम्पूर्ण वेग से तमस
मेरे घर में, मेरे शरीर में
और मेरे हृदय में गया था बस
अब तुम कहते हो
कि प्रकाश की एक लौ जलाओ,
और इस अंधकार के बाहर आ जाओ
तुम नहीं समझते
कि हृत्तम नहीं मिटता है सयास
शव को प्रज्ज्वलित तो करता है
जीवित कदापि नहीं कर सकता
चिता का प्रकाश

५ नवंबर २०१२

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