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उलझी हुई गुत्थी
उलझी हुई,
गुत्थी के सुलझाने की
जल्दी में
एक के बाद एक
धागे को
तोड़ता चला जाता हूँ
टुकड़ों-टुकड़ों में
लो, आखिरकार
उलझन सुलझ तो गई
लेकिन,
यह क्या?
कितना दुश्वार हो गया है
फिर से जोड़ना
इतने सारे टूटे टुकड़ों को।
उफ,
कितनी गाँठों को
निमंत्रण दे दिया है
मैंने। |