अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  तोपों और बन्दूकों से

तोपों
और बन्दूकों से
लेता है, देता है, आदमी
सलामी अब,
मासूम
फूलों की पंखुड़ियाँ
चिंदियाँ चिंदियाँ कर
बिखर जाती हैं, सड़कों पर
देवता खामोश हैं
विनाश की सभी संभावनायें
बिल्कुल मशीन की तरह
सिर झुकाये
पर सीना ताने
एक के बाद एक
गुज़र जाती है सामने से
एक दहशत
वायुयानों की गर्जनाओं के साथ
ज़मीन से आकाश तक
हुंकारती हुई फैलती चली जाती है।
पर,
तभी आता है
नाचते गाते
भोले लोगों और बच्चों का हुजूम
मन थिरक उठता है
दिल के किसी कोने में
एक राहत-सी उग आती है
चलो
अब भी ज़िन्दा है ज़िन्दगी।

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter