सच क्या है
सच क्या है
किसे कहते हैं झूठ
सच पूछो, तो हमें कुछ भी नहीं मालूम
सुबह से शाम तक
पेट की भूख मिटाने
समची दुनिया को
अपनी मुठि्ठयों में समेट लेने की
ललक लिए, हम,
भागते फिरते हैं
या फिर, आराम से
सो जाते हैं
फ़ाइलों में सर ढाँप कर
सच को खोजते हैं
अख़बार की लाइनों में, या फिर
रेडियो की ख़बरों में
टेलीविजन की रूपहली खिड़की भी
दिखा जाती है
गाहे-बगाहे
सच के कुछ झूठे-सच्चे
अधकचरे बिम्ब
थोड़ी प्रसन्नता,
ज़्यादातर उबास
और फिर
सच को तलाशने की मजबूरी से
जी चुराकर
सो जाते हैं हम चादर तानकर
क्योंकि अगले दिन
फिर हमें भागना है
सुबह-तड़के
उस सच की तलाश में
जो हमारे उदर में,
पत्नी की सांसों में,
बच्चों की आँखों में
कुलबुलाता रहता है
हर दम। |