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अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  सच क्या है

सच क्या है
किसे कहते हैं झूठ
सच पूछो, तो हमें कुछ भी नहीं मालूम

सुबह से शाम तक
पेट की भूख मिटाने
समची दुनिया को
अपनी मुठि्ठयों में समेट लेने की
ललक लिए, हम,
भागते फिरते हैं
या फिर, आराम से
सो जाते हैं
फ़ाइलों में सर ढाँप कर

सच को खोजते हैं
अख़बार की लाइनों में, या फिर
रेडियो की ख़बरों में
टेलीविजन की रूपहली खिड़की भी
दिखा जाती है
गाहे-बगाहे
सच के कुछ झूठे-सच्चे
अधकचरे बिम्ब
थोड़ी प्रसन्नता,
ज़्यादातर उबास

और फिर
सच को तलाशने की मजबूरी से
जी चुराकर
सो जाते हैं हम चादर तानकर
क्योंकि अगले दिन
फिर हमें भागना है
सुबह-तड़के
उस सच की तलाश में
जो हमारे उदर में,
पत्नी की सांसों में,
बच्चों की आँखों में
कुलबुलाता रहता है
हर दम।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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