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अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  उगा है कहीं सूरज

उन ऊँची इमारतों के
पीछे उगा है कहीं सूरज
शुरू हो गई है सड़कों पर
मोटरों की घरघराहट
सुबह हो गई है शायद।

रेल की धड़धड़ाहट,
स्कूटरों की थरथराहट
बच्चों के तेज़ कदमों की चाप
यकीनन यह सुबह ही है।

अब और इंतज़ार मत करो
यह शहर है, मेरे भाई
मुर्गा यहाँ बांग नहीं देता
चहचहाते नहीं पक्षी
पेड़ खो चुके हैं संगी-साथी
मेघों की मस्ती यहाँ पास नहीं फटकती।

उठ जाओ अब, तुम, अलसाओ मत
बाहर निकलो, घर से और
ठोस पथरीली सड़कों पर
मशीनी बसों के पीछे भागकर
तलाशो ज़िन्दगी।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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