उगा है कहीं सूरज
उन ऊँची इमारतों के
पीछे उगा है कहीं सूरज
शुरू हो गई है सड़कों पर
मोटरों की घरघराहट
सुबह हो गई है शायद।
रेल की धड़धड़ाहट,
स्कूटरों की थरथराहट
बच्चों के तेज़ कदमों की चाप
यकीनन यह सुबह ही है।
अब और इंतज़ार मत करो
यह शहर है, मेरे भाई
मुर्गा यहाँ बांग नहीं देता
चहचहाते नहीं पक्षी
पेड़ खो चुके हैं संगी-साथी
मेघों की मस्ती यहाँ पास नहीं फटकती।
उठ जाओ अब, तुम, अलसाओ मत
बाहर निकलो, घर से और
ठोस पथरीली सड़कों पर
मशीनी बसों के पीछे भागकर
तलाशो ज़िन्दगी। |