अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  इन्सान, भगवान और दुनिया

इन्सान,
भगवान,
और, दुनिया
मुश्किल है कितना
एक साथ निगाह रख पाना, इन तीनों पर,
लेकिन,
आसान है संभवत:
बहती धार में खुद को छोड़ देना
हो सकता है कि मंज़िल मिल जाए
यह भी संभव है
कि उफनती लहरें
तुम्हें ही किनारा समझकर
काट फेंके ज़मीन से तुम्हारे
सारे रिश्ते
बहा ले जाएँ तुम्हारे पूरे अस्तित्व को ही
लेकिन,
मत भूलो
स्थिरता मौत है
और बहना,
जीवन।

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter