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राजधानी की
इमारतें
राजधानी की ऊँची-ऊँची इमारतों
के
आलीशान खामोश कमरे
धड़कते हैं एयरकंडीशनरों
की सरसराहट पर चुपचाप
इमारतें,
जिनके गलियारे चीखते रहते हैं
लगातार,
भागते-दौड़ते लोगों की निरर्थक चापों से
कदम,
हाँ, कभी-कभार मिल जाती हैं
कुछ लोगों को सीढ़ियाँ
वरना, अधिकतर
हिचकोले खाती है ज़िन्दगी,
लिफ्ट के झकोलों पर
एक तंग से दायरे में
न दाएँ न बाएँ,
न इधर, न उधर
आस की एक डोर के सहारे लटकी हुई
ऊपर से नीचे
नीचे से ऊपर। |