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अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  राजधानी की इमारतें

राजधानी की ऊँची-ऊँची इमारतों के
आलीशान खामोश कमरे
धड़कते हैं एयरकंडीशनरों
की सरसराहट पर चुपचाप

इमारतें,
जिनके गलियारे चीखते रहते हैं
लगातार,
भागते-दौड़ते लोगों की निरर्थक चापों से
कदम,

हाँ, कभी-कभार मिल जाती हैं
कुछ लोगों को सीढ़ियाँ
वरना, अधिकतर
हिचकोले खाती है ज़िन्दगी,
लिफ्ट के झकोलों पर
एक तंग से दायरे में
न दाएँ न बाएँ,
न इधर, न उधर
आस की एक डोर के सहारे लटकी हुई
ऊपर से नीचे
नीचे से ऊपर।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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