पत्थर
धरती की गोद में
दुबक कर सोए
मासूम पत्थर को अचानक
जगा देती है
तूफ़ान में फँसे वृक्ष को गुहार
अपने बचपन की साथी
जड़ों से बिछुड़ने की पीड़ा के लिए
वह उछलकर
दौड़ पड़ता है
मौसम के पीछे
लेकिन,
वक्त के अदृश्य हाथ
खंड-खंड कर देते हैं
उसका समूचा अस्तित्व |