छंदमुक्त में— अंधियारे का एक पूरा युग इनसारन और भगवान की दुनिया उगा है कहीं सूरज उलझी हुई गुत्थी ऊँचे उठना चाहते हो कल ही की बात गलतियाँ कर के भी गांव की बातें ट्रेन की खिड़की तोपों और बंदूकों से दिवस मूर्खों का नहीं सहा जाता पखवारे के हर दिन पत्थर पतझड़ी मौसम परिभाषाएँ पर्वत तो फिर पर्वत है बुढ़ापा राजधानी की इमारतें स्वप्न आखिर स्वप्न सच क्या है
अंधियारे का एक पूरा युग हमने काटा तिल-तिल जल कर महज़, भोर की आशा में भोर हुई, पर धूप समूची ऊँचे वृक्षों के चंचल पत्तों की हरी भरी परिचित माया में
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