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कल ही की बात
अभी कल ही की तो बात है
अच्छी तरह याद है मुझे
सालों-साल पहले का
उसका वह रूप
किलकारियाँ भरते
माँ के वक्ष स्थल को भींचे हुए
उसके वे कोमल होंठ
अपरिमित तृप्ति की मुस्कान में
दमकता उसका भोला चेहरा
लेकिन, आज वह बच्चा नहीं रहा
उसकी भोली मुस्कुराहट
अपने आस-पास की चालाकियों
से लड़भिड़ कर खो चुकी है
अपना पूरा अस्तित्व
उसे कुछ भी याद नहीं है।
हाँ, न जाने कहाँ से उसके जहन
में आ गए हैं क्रांति के कुछ
ऊल-जलूल नारे
ईर्ष्या, हिंसा और तनाव
कुल मिलाकर यही कुछ रह गई हैं
उसकी जमा पूँजी
इनके बल पर
एक मशाल लेकर वह निकल पड़ा है,
एकदम संवेदनशून्य।
कल, फिर क्या होगा?
खोखले नारे, खाली वायदों की
पीठ पर चढ़कर करेंगे
अट्टाहास
द्वेष का राक्षस अपनी अंधेरी
गुफा से निकल करेगा तांडव
मेरे उस नन्हें दोस्त को अब कभी नहीं आएगा
माँ की गोद का अपना वह अलौकिक
सुख, और
तमाम संवेदनाओं से
बेखबर
वह कर देगा बलात्
किसी शिशु को अलग
उसकी माँ की गोद से। |