परिभाषाएँ
परिभाषाएँ बदलने मात्र से
क्या सचमुच बदल जाती हैं चीज़ें
पहना दो, आदमी को
टोपी, पगड़ी या फिर शेरवानी
दे दो उसे तुम चाहे
कोई भी नाम
हिन्दू, सिख, ईसाई या मुसलमान
लेकिन, उससे आम इन्सान को
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
हाँ, फ़ायदा उठा लेते हैं
चंद तथाकथित विद्वान,
जो इन्सान की लाचारी
को अपने काले अक्षरों में ढाल
पा लेते हैं डॉक्टरेट
या फिर कुछ नेता
जो खोल लेते हैं इनके बल पर
अपनी एक अलग दुकान।
पर्वत तो फिर पर्वत है
पर्वतों को लांघने
की हमारी आकांक्षाएँ
उस पार पहुँचने की तमाम क्षमताएँ
न जाने क्यों
सिकुड़कर सिमट जाती हैं
आलस्य और हड़बड़ाहट
की गठरियों में
हमारी तमाम आस्थाएँ
छोड़ देती हैं
हमारा साथ
और हम,
घर की देहरी भी लांघ नहीं पाते
पर्वत तो
फिर पर्वत है।
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