छंदमुक्त में— अंधियारे का एक पूरा युग इनसारन और भगवान की दुनिया उगा है कहीं सूरज उलझी हुई गुत्थी ऊँचे उठना चाहते हो कल ही की बात गलतियाँ कर के भी गांव की बातें ट्रेन की खिड़की तोपों और बंदूकों से दिवस मूर्खों का नहीं सहा जाता पखवारे के हर दिन पत्थर पतझड़ी मौसम परिभाषाएँ पर्वत तो फिर पर्वत है बुढ़ापा राजधानी की इमारतें स्वप्न आखिर स्वप्न सच क्या है
स्वप्न आखिर स्वप्न है सचाई से कोसों दूर लेकिन सच के कितना पास। वह सब कुछ जो हम देखते हुए भी अनदेखा कर देते हैं उसी नाजायज़ संतान को हमारी आँखों के सामने बिना बताए ले आते हैं स्वप्न और कहते हैं लो, देखो, तुम्हारी असलियत है यह।
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