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अनुभूति में शशिकान्त गीते की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
बसंत
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मृत्यु
शब्द-प्रेम

दोहों में-
असली मंजिल दूर है

गीतों में-
आसमान गुमसुम रहता है
इक राजा था, इक रानी थी
एक टिमटिम लौ
एक टुकड़ा धूप
कम्प्यूटर रोबोट
ताँगे वाला घोड़ा
दूर अभी मंजिल है
फूलों की घाटी मे
भैंस सुनती बाँसुरी
मन माँगे ठौर
महानगर
मुए केंचुए
रोटी से ऐटम-बम प्यारा
रूप रस गंधों वाले दिन
स्लेट लिखे शब्दों के
समय को नाथ!

संकलन में-
चंपा- चंपा कुछ हाइकु
गंगा- धार समय की
ममतामयी- अम्मा चली गई
         माँ के सपने
रक्षाबंधन- राखी धागा सूत का
वर्षा मंगल- बूँदों ने क्या छुआ देह को
हरसिंगार- पारिजात के फूल
         हाइकु
होली है- मस्ती के फाग

 

मृत्यु

उसने कहा- "हँसो!"
मैं हँस दिया।
उसने कहा- "रोओ!"
मैं रोने लगा।
फिर उसने कहा- "हँसो भी, रोओ भी!"
मैं अटपटे ढंग से हँसने और रोने लगा।
इस तरह
उसने जो भी कहा
मैं करता रहा।
अंततः उसने मुस्कुराते हुए आदेश दिया-
"मर जाओ!"
परन्तु इस बार
मुझे कुछ भी करने की जरूरत कहाँ थी?

१ मई २०२२
 

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