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पूजा-घर का दीप बुझा है
अम्मा चली गई.
अंत समय के लिए सहेजा
गंगा-जल भी नहीं पिया
इच्छा तो कितनी थी लेकिन
कोई तीरथ नहीं किया
बेटों पर विश्वास बडा था
आखिर छली गई.
लोहे की संदूक खुली
भाभी ने लुगडे छाँट लिये
औ' सुनार से वजन करा कर
सबने गहने बाँट लिये
फिर उजले संघर्षो पर भी
कालिख मली गई.
रिश्तेदारों की पंचायत
घर की फाँके, चटखारे
उसकी इच्छाओं, हिदायतों
सपनों पर फेरे आरे
देख न पाती बिखरे घर को
अम्मा! भली गई
-शशिकांत गीते |