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माँ के सपने
माँ के सपने, केवल अपने
सुख-दुख भी तो
होते होंगे
सूख गई
हैं फसलें सारी
खरपतवारों के आने से
जुगनूँ निकल न पाए बाहर
अंधकार के
तहखाने से
कोई सिसकी नहीं सुनी पर
कैदी चुप-चुप
रोते होंगे
अमरित
चाहें देव भयाकुल
विष चाहें, विश्वासी योगी
नीलकंठ-सी
सिद्ध-साधना
केवल साधक माँ की होगी
सारे बोझे ढोती जैसे
शेष धरा को
ढोते होंगे
-शशिकांत गीते
१५ अक्तूबर २०१२
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