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अनुभूति में शशिकान्त गीते की रचनाएँ-

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असली मंजिल दूर है

गीतों में-
आसमान गुमसुम रहता है
इक राजा था, इक रानी थी
एक टिमटिम लौ
एक टुकड़ा धूप
कम्प्यूटर रोबोट
ताँगे वाला घोड़ा
दूर अभी मंजिल है
फूलों की घाटी मे
भैंस सुनती बाँसुरी
मन माँगे ठौर
महानगर
मुए केंचुए
रोटी से ऐटम-बम प्यारा
रूप रस गंधों वाले दिन
स्लेट लिखे शब्दों के
समय को नाथ!

संकलन में-
चंपा- चंपा कुछ हाइकु
गंगा- धार समय की
ममतामयी- अम्मा चली गई
         माँ के सपने
रक्षाबंधन- राखी धागा सूत का
वर्षा मंगल- बूँदों ने क्या छुआ देह को
हरसिंगार- पारिजात के फूल
         हाइकु
होली है- मस्ती के फाग

 

माँ

माँ! तुम कहाँ हो
देखो!
कितने दिनों से नहाए नहीं हैं
तुम्हारे बालमुकुंद
बजरंगी हैं उदास
दस दिनों से नहीं सुनी है
तुम्हारे काँपते स्वरों में रामचरित मानस
हो चुकी है शाम
सुनाई नहीं दी अबतक
तुम्हारी प्यार भरी डपट
कि जीम ले
सरी संझा भी गडा़ए रहता है आँखें
किताबों में
हो रही है देर
लगी है भूख मुझे
तुमने ही डाली है आदत
जल्दी जीमने की
चलो दे दो भंडारे में रखी मिठाई
मेरी कमजोरी
जो खिलाती रही हो अपने हिस्से की भी
अभी बहुत है कह कर
भड़क उठा हूँ कई बार
तुम्हारे ऐसे लाड़ पर
पर आज नही
चलो दे दो अपने हिस्से की भी
वरना रो पड़ूँगा जोर से
फिर न कहना
रोना घोल कर बैठा है
सरी साँझ।

१ मई २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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