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होली है

 

मस्ती के फाग

डाल कर के
पेट में महुए की आग
खेलते हैं कोरकू मस्ती के फाग

भूल कर
भूख के हैं, सारे लफड़े
पहन कर सूद के ये मोटे कपड़े
निचुड़ी योजना के
छेड़े हैं राग

फागुन
के रंग रंगे सूखे पलाश
धरती पर पाँव धरे आँखों आकाश
अपनी चादरिया लें
औरौं के दाग

भूत न
भविष्यत ही रखें आसपास
कल थे कल फिर से हों शायद उदास
बेफिकरे ना आगे ना
पीछे लाग

शशिकांत गीते
५ मार्च २०१२

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