ऋषिकेश में गंगा जैसी
बहुत तेज है धार समय की
शंख-सीपियाँ, मूँगे-मोती
बह जाते हैं
कुहरे डूबे, कटे किनारे
रह जाते हैं
पत्थर टुकडे़-टुकडे़ होते
बहुत बुरी है मार समय की
गतियों के सारे भ्रम
टूट, डूब जाते हैं
दुस्साहस के हाथों
बुझे अहम आते हैं
भग्न किलों से भी जाना है
जीत हुई हर बार समय की
-शशिकांत गीते
२८ मई २०१२ |