रूप, रस,
गंधों वाले दिन
लौट आए भटके-भूले
रूप, रस,
गंधों वाले दिन
फूल गाते हैं मीठे गीत
नदी का मधुर, सुगम संगीत
हवा के मनमोहक हैं नृ्त्य
महकते छंदों
वाले दिन।
रूप, रस,
गंधों वाले दिन
धूप की नजरें उट्ठी आज
बनी हैं बातें बिन आवाज
गले से ऊपर सब डूबे
नए अनुबंधों
वाले दिन
रूप, रस,
गंधों वाले दिन
चाँदनी तिरछे करती होंठ
चाँद के मन को रही कचोट
युगों की मरजादों से दूर
टूटते बंधों
वाले दिन
रूप, रस,
गंधों वाले दिन
९ मार्च २०१५