अनुभूति में
शशिकान्त गीते
की रचनाएँ-
न ई
रचनाओं में-
इक राजा था, इक रानी थी
महानगर
मुए केंचुए
रूप रस गंधों वाले दिन
स्लेट लिखे शब्दों के
दोहों में-
असली मंजिल दूर है
गीतों में-
आसमान गुमसुम रहता है
एक टिमटिम लौ
एक टुकड़ा धूप
कम्प्यूटर रोबोट
ताँगे वाला घोड़ा
दूर अभी मंजिल है
फूलों की घाटी में
भैंस सुनती
बाँसुरी
मन माँगे ठौर
रोटी से ऐटम-बम प्यारा
समय को नाथ!
संकलन में-
चंपा-
चंपा कुछ हाइकु
गंगा-
धार समय की
ममतामयी-
अम्मा चली गई
माँ के सपने
रक्षाबंधन-
राखी धागा सूत का
वर्षा मंगल-
बूँदों ने क्या छुआ देह को
हरसिंगार-
पारिजात के फूल
हाइकु
होली है-
मस्ती के फाग |
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महानगर
महानगर के मेरे भैया
बड़े अजब हैं ढंग
ठुँसे वाहनों लोग, रोग हैं
जाने क्या-क्या पहने
भरी अटैची-बैग हाथ में
लुटे हुए हैं गहने
रंगबिरंगी सुबह, शाम तक
हो जाती बदरंग
धुआँ कसैला रोके साँसें
गला दबाती रोटी
गिद्ध-बाज जिंदा लाशों की
नोचें बोटी-बोटी
जीवन टुकड़े, हर टुकड़े की
अपनी-अपनी जंग
पेड़ों नीचे देह कतारें
कमसिन, तरुण, अधेड़
हफ्ताबंद प्रशासन काटे
गूँगे मुजरिम पेड़
नहर भूमिगत भरे जड़ों में
फिर-फिर नई उमंग
दिन उलझाए रखते तन-मन
झकझोरे हैं रातें
और उमस में घुट दम तोड़े
थकी-डरी-सी बातें
विकृत हवा यहाँ हो जाती
इसके-उसके संग
रोते-रोते हँस देता है
हँसते-हँसते रोता
सतत् जागता पगलाया-सा
कोलाहल है ढोता
मन, मस्तिष्क, हृदय पथराए
लगता पड़ा अपंग
नदी रोशनी की बहती है
अँधियारे में कूल
चिकनी सड़कों पाँव फिसलते
चुभते मन में शूल
बार-बार गाते बाउल का
स्वर हो जाता भंग
९ मार्च २०१५ |