अनुभूति में
जगदीश
पंकज
की रचनाएँ—
गीतों में-
आँकड़ों में ही बदलकर
एक मंचन, एक अभिनय, एक सच
कहाँ कहाँ पर जाकर खोजें
बोलता जो झूठ को
हम मिले हैं मित्रवत
छंदमुक्त में-
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कहीं पर
कुछ घटना कुछ क्षण
कुलाँचें
जख्मों का अहसास नहीं
मैं थोड़ा मुस्कराना
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे
हम समंदर
गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह
टूटते
नक्षत्र सा जीवन
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
मुद्राएँ
बदल-बदलकर
सब कुछ
नकार दो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये |
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हम मिले हैं
मित्रवत
हम मिले हैं मित्रवत, जब भी मिले
पर असहमतियां नहीं हैं दूरियाँ
सामने आयी नहीं मतभिन्नता
प्रेम के अनुरक्त मन टूटे नहीं
रास्ते में ज्यों कँटीली झाड़ियाँ
किन्तु खिलते प्यार के
बूटे कहीं
मन-हिरन मिल खोजते रहते सदा
नाभियों में पल रहीं कस्तूरियाँ
छू न पायीं वे घृणा की व्याधियाँ
जिन्हें संक्रामक कहा जाता रहा
स्नेह के सम्बन्ध पलते ही रहे
बन ठिठोली या ठहाका,
कहकहा
यह हृदय की धडकनों का मेल है
एक-दूजे की नहीं मजबूरियाँ
आपसी सम्मान को रख ध्यान में
हम समन्वय को लिये चलते रहे
एक उत्कट चाह मिलने की रही
प्यार के अनुपात में
ढलते रहे
कभी टकरायी नहीं हैं भूल से
वे हमारे बीच की मंजूरियाँ
१ सितंबर २०२२ |