अनुभूति में
जगदीश
पंकज
की रचनाएँ—
नये गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे
गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह
टूटते
नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ
बदल-बदलकर
सब कुछ
नकार दो
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सब कुछ नकार दो
अर्थहीन स्वीकृतियों से
अच्छा है, खुलकर तुम सब कुछ नकार दो
आश्वासन झूठ से सने
भ्रामक उपदेश दे रहे
क्रंदन जो मूक फूटता
तुम उसको, विघ्न कह रहे
गंधहीन पुष्पों से
अच्छा है चुनकर तुम काँटे पसार दो
बडबोली योजना विफल
आती हमको उजाड़कर
आयातित आपकी कलम
गाती है कंठ फाड़कर
रसविहीन नाटक से
अच्छा है बुनकर तुम यौनिक विचार दो
नैतिकता कैद कर रहा
श्रीमान का भ्रष्ट आचरण
ऐसी यह क्या हवा चली
धुएँ का घिरा आवरण
कर्महीन जीवन से
अच्छा है पलकर तुम चैतन्य मार दो
१६ सितंबर २०१३ |