अनुभूति में
जगदीश
पंकज
की रचनाएँ—
नये गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे
गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह
टूटते
नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ
बदल-बदलकर
सब कुछ
नकार दो
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कुछ घटना कुछ
क्षण
कुछ घटना कुछ क्षण होते हैं
जो सारा जीवन होते हैं
किसको फेंकें किसे सहेजें
सपने बिखरे कण होते हैं
लोकतंत्र में मतदाता तो
मत देने को गण होते हैं
किसको ओढें, किसे बिछायें
वे जो नंगे तन होते हैं
अपनी-अपनी राम कहानी
अपने गीत-भजन होते हैं
२३ दिसंबर २०१३ |