अनुभूति में
जगदीश
पंकज
की रचनाएँ—
नये गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे
गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह
टूटते
नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ
बदल-बदलकर
सब कुछ
नकार दो
|
|
लो बोझ आसमान
का
लो बोझ आसमान का, डैनों पे
तोलकर.
उड़ने लगा विहंग, आज पंख खोलकर.
मौसम की बात साफ-साफ,कह के देखिये
सुख ही मिलेगा आपको, कटु-सत्य बोलकर.
कितनी उमस है, धुंध-धुआँ आसमान में
ऊबे नहीं हैं लोग, अभी जहर घोलकर.
हम हादसों से हरकतों में, आ गए मगर
संदिग्ध उंगलिओं को भी, देखें टटोलकर.
चाही थी स्वप्न में कभी, उजली कोई सुबह
'पंकज' उसी की आस में, बैठे हैं डोलकर
२३ दिसंबर २०१३ |