अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

नये गीतों में- 
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी

पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो

 

टूटते नक्षत्र सा जीवन

टूटते नक्षत्र सा
जीवन अनिश्चय से भरा है
क्या पता किस ठौर यह जाकर गिरेगा

हम अधर का
पन्थ तय करते रहे हैं योजना में
कागजों के पंख लेकर लक्ष्यहीना संस्कृति की
धूल को सर पर चढ़ाये हम उठे आवाज देकर
व्यर्थ की
चीखों-पुकारों को भुजाओं में भरे
यह आधुनिक जीवन यहाँ कब तक घिरेगा

हम प्रगति के
नाम पर पीछे हटे हैं आज तक भी
कल्पना में व्योम नापा और हम अनुवाद करते
जा रहे हैं नव सृजन में बस पुरानी मान्यता का

कब नए युगबोध
की ताजा हवा लेकर चमन में
चेतना का पुन्य-पल किस दिन खिलेगा

आज आक्रोशी
मुखौटों को हटा कर देख लें यदि
विश्व कम्पन कर उठेगा हम नया सूरज उगाने की
अगर सौगंध लें जग रौशनी से भर उठेगा

हम ठिठुरते
जा रहे इस जेठ की सी दुपहरी में
पर हमारा दम्भ यह किस दिन ठिरेगा

१६ सितंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter