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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

नये गीतों में- 
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी

पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो

 

शब्द जल जाएँगे

शब्दजल जायेंगे हवाओं से
आप गुजरेंगे बस तनावों से

मैं फकत आईना दिखाता हूँ
खुद को खुद पूछिये अदाओं से

आपकी चीख शोर में गुम है
लोग चिपके हैं अपने घावों से

यह महज इत्तिफाक ही होगा
खड़े होगे जो अपने पावों से

खंजरों से तो बच भी जाओगे
बचना मुश्किल है इन अदाओं से

आग बाहर हो या कि भीतर हो
हम सभी घिर गए शुआओं से


२३ दिसंबर २०१३

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