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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

नये गीतों में- 
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी

पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो

 

पोंछ दिया मैलापन

पोंछ दिया मैलापन
टूटे मन दर्पण का
संवेदित बिम्ब, पर
कटे से हैं

फेंक गए संस्मरण
पाषाणी प्रभाव
अनुगति का अंधापन
फीका हर चाव
बहुत किया आकलन
भस्मी औ' चन्दन का
पूजा के भेद, पर
बँटे से हैं

स्थितियाँ कर गयीं
तथागती निष्क्रमण
तर्कों में बीत गए
अपने चलने के क्षण
भूत में नियोजन
वर्तमान पीढ़ी का
प्रेरक, पर पृष्ठ सब
अटे से हैं

७ जुलाई २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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