अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

नये गीतों में- 
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी

पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो

 

आज अपना दर्द

आज अपना दर्द हम किसको सुनाएँ
पल रही सबके दिलों में वेदनाएँ

पुस्तकों से बंद होते जा रहे हैं
लोग पढ़ पाते नहीं हैं भूमिकाएँ

आस्थायें मौन घुटती जा रही हैं
मुक्ति की धूमिल हुई संभावनाएँ

रात का आँचल पड़ा है भोर के मुख
ब्राह्म-वेला में कहो क्या गुनगुनाएँ

कोई कविता प्राण की कैसे सुनेगा
घिर रही चारों तरफ आलोचनाएँ

आज हम किससे कहें अपनी कहानी
मिल रही सबकी निराशक सूचनाएँ 


२३ दिसंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter