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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
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अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कहीं पर
कुछ घटना कुछ क्षण
कुलाँचे
जख्मों का अहसास नहीं
मैं थोड़ा मुस्कराना
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

हम समंदर

गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

 

चला जा रहा था

चहरे टटोलता
खु़द से ही कुछ बोलता
चला जा रहा था
सवालों की गांठें
ख़यालों के झुरमुट
मर चुके लम्हें
पुराने कुछ साथी
वो चहरे, शहर, नहर, बाग़, वो गली, चौबारे
किसी की खिलती हँसी
कुछ पल को उभरते
फिर गायब हो जाते
मै सोचता
खु़द से ही कुछ बोलता
चला जा रहा था।

१ नवंबर २०१९



 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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