चला जा
रहा था
चहरे टटोलता
खु़द से ही कुछ बोलता
चला जा रहा था
सवालों की गांठें
ख़यालों के झुरमुट
मर चुके लम्हें
पुराने कुछ साथी
वो चहरे, शहर, नहर, बाग़, वो गली, चौबारे
किसी की खिलती हँसी
कुछ पल को उभरते
फिर गायब हो जाते
मै सोचता
खु़द से ही कुछ बोलता
चला जा रहा था।
१ नवंबर २०१९