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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
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अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कहीं पर
कुछ घटना कुछ क्षण
कुलाँचे
जख्मों का अहसास नहीं
मैं थोड़ा मुस्कराना
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

हम समंदर

गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

 

गुज़ारिश

भीतर से खोखले हो चुके
हरे से दिखने वाले इस पेड़ पर
दीमक की लार से
विकास का ये इश्तहार
ज़रा ध्यान से चिपकाइए
और
उम्मीद के बचे खुचे
आधे पीले पत्तों पर
नए भरोसे का
ये हरा पेंट
किसी मंझे हुए चित्रकार
से लगवाना
ताकि फिर से
नए मौसम का भ्रम सा हो जाए।

१ नवंबर २०१९

 

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