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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

नयी रचनाओं में- 
कहीं पर
कुलाँचें
जख्मों का अहसास नहीं
मैं थोड़ा मुस्कराना
हम समंदर

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

 

हम समंदर

हम समंदर से बहुत ही दूर थे
पर हवाओं के थपेड़े क्रूर थे

इस जमीं को कुछ नमी मिलती रहे
हम बचाने ओस को मजबूर थे

आदमी में आदमीयत भी रहे
हौसले ईमान के भरपूर थे

क्या पता कब संगदिल हो जायेंगे
जो इबादत के नशे में चूर थे

ज़ख़्म जो हमको मिले रिसते हुए
वे तुम्हारे ही दिये नासूर थे

दर्द जो ढोते रहे हम उम्र भर
सब तुम्हारे गाँव के दस्तूर थे

अब फसीलों से उतर कर आ गए
जो गरीबों की पहुँच से दूर थे

वे सभी किस्से पुराने हो गए
जो रिझाने के लिए मशहूर थे

चाल चलने से बहुत घबरा रहे
अपने फ़न में जो कभी मगरूर थे

१ दिसंबर २०१७

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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