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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
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अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कहीं पर
कुछ घटना कुछ क्षण
कुलाँचे
जख्मों का अहसास नहीं
मैं थोड़ा मुस्कराना
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

हम समंदर

गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

 

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बाप को चाकलेट देकर
जागिंग के लिए भेजती
और सीटी बजाकर
किसी लड़के को पास बुलाती
भारतीय युवा पीड़ी की प्रतीक,
एक लड़की,
लाइफ़ के मज़े लेती है।
कुछ भी खरीदो
बस..मज़ा लो
बनियान, परफ़्यूम, टुथपेस्ट, पान मसाला....

बाज़ार दीमक की तरह
चाट रहा है
मध्यम वर्ग को और
लूट रहा है हमारी संस्कृति
हमारे पारिवारिक मूल्य
हमारे घर
और हम
परिवार सहित देखते हैं
टेलिवीज़न

१ नवंबर २०१९
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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