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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

गीतों में-
आँकड़ों में ही बदलकर
एक मंचन, एक अभिनय, एक सच
कहाँ कहाँ पर जाकर खोजें
बोलता जो झूठ को
हम मिले हैं मित्रवत

छंदमुक्त में-
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कहीं पर
कुछ घटना कुछ क्षण
कुलाँचे
जख्मों का अहसास नहीं
मैं थोड़ा मुस्कराना
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

हम समंदर

गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

 

बोलता जो झूठ को

बोलता जो झूठ को
वह सत्य क्या है जानता है

तेज हमलावर बना वह गरजता ले भंगिमाएँ
और अवसर देखकर ही बदल लेता भूमिकाएँ
मंच पर चढ़ दर्शकों की
नब्ज वह पहचानता है

फेंकता है शब्द बौने वह सदा वातावरण में
और अर्थों को बदलता है अनोखे व्याकरण में
हम उसे अपना समझते
यह निरी अज्ञानता है

पूर्व-निर्धारित-किये-वह-लक्ष्य-से-विचलित-नहीं-है
छद्म-छल-के-उपकरण-ले-वह-कहीं-शंकित-नहीं-है
स्वामियों की भक्ति को ही
वह समर्पण मानता है 

१ सितंबर २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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