नयी रचनाओं में- उठो जमूरे काशी के हम पण्डे जी क्या लिखते हो ठसक वही की वही रही मौन विदुर से
गीतों में- ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे छेदों वाला पाल बुना रे लिक्खें किसको अब चिट्ठी
अंजुमन में- इतना क्यों बेकल खुशी भले पैताने रखना थोड़े अपने हिस्से धूप खड़ी दरवाज़े अगली कारगुजारी में अब करें भी हम दुआ क्या घाटों के ना घर के साहब बेबसों की बेबसी की मुझको भी है भान अभी
छंदमुक्त में- आजकल कितने ही राम कैसे चिड़िया और कविता चिड़िया की पलकों में दीवारें बचपन मित्र के जन्म दिन पर यों ही विश्वास शब्द पक रहे हैं
ठसक वही की वही रही साथ हमारे यही रही पीड़ाएँ अनकही रहीं थोप दिये आभारों के चर्चे फ़क़त उधारों के देनदार सब हुए फरार बेबस सी बस बही रही वादी वही, वही प्रतिवादी शक्लें इक दूजे की आदी वही दलीलें ख़ुद को लीलें ठसक वही की वही रही
१ अक्टूबर २०२३ २३ फरवरी २०१५
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