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अनुभूति में प्रदीप कांत की रचनाएँ -

नयी रचनाओं में-
अगली कारगुजारी में
अब करें भी हम दुआ क्या
घाटों के ना घर के साहब
बेबसों की बेबसी की
मुझको भी है भान अभी

गीतों में-
उठो जमूरे
क्या लिखते हो
काशी के हम पण्डे जी
ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
छेदों वाला पाल बुना रे

ठसक वही की वही रही
मौन विदुर से
लिक्खें किसको अब चिट्ठी

अंजुमन में-
इतना क्यों बेकल
खुशी भले पैताने रखना
थोड़े अपने हिस्से
धूप खड़ी दरवाज़े

छंदमुक्त में-
आजकल
कितने ही राम
कैसे
चिड़िया और कविता
चिड़िया की पलकों में
दीवारें
बचपन
मित्र के जन्म दिन पर
यों ही
विश्वास
शब्द पक रहे हैं

 

बेबसों की बेबसी की

बेबसों की बेबसी की
जंग बस है ज़िन्दगी की

क्या किया है ज़िन्दगी भर
बस बसर ये ज़िन्दगी की

वो नदी सूखी जिसे थी
फिक्र मेरी तिश्नगी की

आस कितनी देर करते
मोम से हम रोशनी की

आ गई है फिर अमावस
याद लेकर चाँदनी की

अब लुटेरे कर रहे हैं
फिक्र नेकी में कमी की

हम कहाँ तब तक जियेंगे
फिक्र क्यों पूरी सदी की

मौत भी मिलती हमें तो
बात करती ज़िन्दगी की

२९ जून २०१५

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