बेबसों की
बेबसी की
बेबसों की बेबसी की
जंग बस है ज़िन्दगी की
क्या किया है ज़िन्दगी भर
बस बसर ये ज़िन्दगी की
वो नदी सूखी जिसे थी
फिक्र मेरी तिश्नगी की
आस कितनी देर करते
मोम से हम रोशनी की
आ गई है फिर अमावस
याद लेकर चाँदनी की
अब लुटेरे कर रहे हैं
फिक्र नेकी में कमी की
हम कहाँ तब तक जियेंगे
फिक्र क्यों पूरी सदी की
मौत भी मिलती हमें तो
बात करती ज़िन्दगी की
२९ जून २०१५
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