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अनुभूति में प्रदीप कांत की रचनाएँ-

गीतों में-
क्या लिखते हो
काशी के हम पण्डे जी
ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
छेदों वाला पाल बुना रे

लिक्खें किसको अब चिट्ठी

अंजुमन में-
इतना क्यों बेकल
खुशी भले पैताने रखना
थोड़े अपने हिस्से
धूप खड़ी दरवाज़े

छंदमुक्त में-
आजकल
कितने ही राम
कैसे
चिड़िया और कविता
चिड़िया की पलकों में
दीवारें
बचपन
मित्र के जन्म दिन पर
यों ही
विश्वास
शब्द पक रहे हैं

 

  चिड़िया की पलकों में

उड़ना सीख रही
उस चिड़िया की पलकों में

आकाश के संग ही
सिमटते जा रहे हैं
अक्षर भी

जिनको बिखेर देगी वह
बीजों की तरह
चारों तरफ

चिन्ता नहीं है उसे
गिद्धों के क्रोध की
हालाँकि ताड़ने लगी है
उसकी नज़रें

हवा की बदलती दिशा के सामने असहाय
कुछ खुसट पेड़
परेशान हैं कि
रंग बिरंगे सपनों के बजाय
काले काले अक्षर
क्यों भाने लगे हैं
चिड़िया की पलकों को

दुनिया भर में
समाचार बन चुका है
चिड़िया और अक्षरों के बीच
गहराता सम्बन्ध

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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