|
धूप खड़ी है
बाहर
धूप खड़ी है बाहर
देख
गीत गगन के गाकर देख
अगर परखना है सच को
ख़ुद से आँख मिला कर देख
जिस पत्थर से खाई ठोकर
पूजा उसकी भी कर देख
ख़ुद पर ही आएँगे छींटे
दामन ज़रा बचा कर, देख
रावण है, है नहीं विभीषण
अब तू तीर चला कर देख
नींद सुलाती है इस पर भी
धरती का ये बिस्तर देख
२६ जुलाई २०१० |