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अनुभूति में प्रदीप कांत की रचनाएँ-

गीतों में-
क्या लिखते हो
काशी के हम पण्डे जी
ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
छेदों वाला पाल बुना रे

लिक्खें किसको अब चिट्ठी

अंजुमन में-
इतना क्यों बेकल
खुशी भले पैताने रखना
थोड़े अपने हिस्से
धूप खड़ी दरवाज़े

छंदमुक्त में-
आजकल
कितने ही राम
कैसे
चिड़िया और कविता
चिड़िया की पलकों में
दीवारें
बचपन
मित्र के जन्म दिन पर
यों ही
विश्वास
शब्द पक रहे हैं

 

धूप खड़ी है बाहर

धूप खड़ी है बाहर देख
गीत गगन के गाकर देख

अगर परखना है सच को
ख़ुद से आँख मिला कर देख

जिस पत्‍थर से खाई ठोकर
पूजा उसकी भी कर देख

ख़ुद पर ही आएँगे छींटे
दामन ज़रा बचा कर, देख

रावण है, है नहीं विभीषण
अब तू तीर चला कर देख

नींद सुलाती है इस पर भी
धरती का ये बिस्‍तर देख

२६ जुलाई २०१०

 

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