लिक्खें किसको
अब चिट्ठी
लिक्खें किसको
अब चिट्ठी
जब से मुआ ‘फोन’
हुआ है
पेन हमारा मौन हुआ है
पड़ा जेब में मुँह लटकाऐ
जैसे करी
किसी ने पिट्टी
कौन पुराने कौन नये
हुए वहीं के जहाँ गऐ
वो मिट्टी आवाज़ लगाती
नहीं छोड़ती पर
ये मिट्टी
फिरते सीना ताने हम
हुए मशीनों वाले हम
पीसे तो अम्मा ही पीसे
नहीं चले है
हमसे घट्टी
३० जून २०१४
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