गीतों में- क्या लिखते हो काशी के हम पण्डे जी ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे छेदों वाला पाल बुना रे लिक्खें किसको अब चिट्ठी
अंजुमन में- इतना क्यों बेकल खुशी भले पैताने रखना थोड़े अपने हिस्से धूप खड़ी दरवाज़े
छंदमुक्त में- आजकल कितने ही राम कैसे चिड़िया और कविता चिड़िया की पलकों में दीवारें बचपन मित्र के जन्म दिन पर यों ही विश्वास शब्द पक रहे हैं
सर्द फर्श की तरह ठंडा शहर
जहाँ की तहाँ जम-सी गई हैं भावनाएँ
दिलों और दहशत के बीच ठिठक से गए हैं सम्बन्ध
भूख बहल रही है प्रशासनिक डंडों से और मुहल्ला छाप आक्रमणों से कितने ही राम
और मजबूर मैं! बन्द दरवाज़े पर आस्थाएँ पढ़ने को
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अंजुमन। उपहार। काव्य चर्चा। काव्य संगम। किशोर कोना। गौरव ग्राम। गौरवग्रंथ। दोहे। रचनाएँ भेजें नई हवा। पाठकनामा। पुराने अंक। संकलन। हाइकु। हास्य व्यंग्य। क्षणिकाएँ। दिशांतर। समस्यापूर्ति
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