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अनुभूति में प्रदीप कांत की रचनाएँ -

गीतों में-
क्या लिखते हो
काशी के हम पण्डे जी
ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
छेदों वाला पाल बुना रे

लिक्खें किसको अब चिट्ठी

अंजुमन में-
इतना क्यों बेकल
खुशी भले पैताने रखना
थोड़े अपने हिस्से
धूप खड़ी दरवाज़े

छंदमुक्त में-
आजकल
कितने ही राम
कैसे
चिड़िया और कविता
चिड़िया की पलकों में
दीवारें
बचपन
मित्र के जन्म दिन पर
यों ही
विश्वास
शब्द पक रहे हैं


 

 

बचपन

कंकर गुलेल और बरगद
कच्ची इमली कच्चे आम
भूल न पाए अब तक भी हम
नंगे पैर गुज़रती शाम

आजकल

आजकल
खिलौने नहीं माँगते बच्चे

टिकी रहती है उनकी निगाहें
अपने कोर्स की
किताबों पर

दीमकों की तरह
किताबों को
चाट जाना चाहते हैं
बच्चे

विश्वास

स्कूल जाते
बच्चे के बस्ते में

चुपके से डाल देता हूँ
कुछ अधूरी कविताएँ

इस विश्वास के साथ
कि वह
पूरी करेगा इन्हें
एक दिन

 

दीवारें

दीवारों के सहारे
उग आई हैं गाजरघास
या गाजरघास के सहारे
उठाई गईं हैं दीवारें?

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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