काशी के हम
पंडे जी
जाने किसके डण्डे जी
मीठी बातों के पीछे
छुपे हुऐ हथकण्डे जी
अपनी आप बघारो जी
हमको नहीं उतारो जी
आप मौलवी काबा के तो
काशी के हम पण्डे जी
जिसकी भी अब खाएँगे
वही घराना गाएँगे
उस्तादों ने
बाँध दिये
हम को पक्के गण्डे जी
किसकी कुर्सी, बैठा कौन
जैसे सब हैं, हम भी मौन
बेईमानों की
मृत्यु पर
झुके हुऐ हम झण्डे जी
१ अक्टूबर २०२३
३० जून २०१४
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