नभ फिर से हो जाए गुलाबी
धरती मले गुलाल
पुरवाई भी हँसकर अपना
आगे कर दे गाल
ड्योढ़ी फिर से सुने तान जो
ढोली ढोल सुनाए
खिड़की भी फिर कान लगाकर
धीमे से बतियाए
धनिया के पाँवों में फिर से
आ जाए अब ताल
रंगहीन दीवारों को भी
रँगकर रंग मुस्काए
गुँझिया अधरों से लगकर के
मन में बीन बजाए
दूध-दही की नदियों वाला
फिर आ जाए काल
पीड़ा के जो राजमहल हैं
वे सारे ढह जाएँ
प्रेम प्यादे भर पिचकारी
नेह सुधा बरसाएँ
सपने धनवा को रँगकर के
ख़ुद हों मालामाल
पुरवाई भी हँसकर अपना
आगे कर दे गाल
- गीता पंडित |