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       फागुन का असर

सिल्की हुए हैं बाल, ये फागुन का असर है
सुर्खी लिए हैं गाल, ये फागुन का असर है

देवर के तीखे नैन को, चुपके से देखकर,
भाभी हुईं निहाल, ये फागुन का असर है

जो बुझ गयी थी सिर्फ, बुढ़ापे के नाम पर,
जलने लगी मशाल, ये फागुन का असर है

कूकर में पड़ोसन के, सीटी लगे बिना
गलने लगी है दाल, ये फागुन का असर है

शालीन बेमिसाल थे, श्रीमान, श्रीमती
करने लगे बवाल, ये फागुन का असर है

चिकना गयी है पुरइन, हँसने लगे कमल
रंगीन हुआ ताल, ये फागुन का असर है

अभिव्यक्ति में अनुभूति के, बस चंद भाव हैं
हर शब्द है गुलाल, ये फागुन का असर है

- उमा प्रसाद लोधी
१ मार्च २०२४
   

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