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       बंसत बहार

बयार चली है प्यार की
ऋतु आई पावन, बसंत बहार की
प्रकृति ने किया है, सोलह शृगार,
खेतों में लहलहाती, पल्लवित पीत किनार

उड़ चली बागों में तितलियाँ
करती अठखेलियाँ
चमक रही हैं सुंदर, सुनहरी गेहूँ की बालियाँ
पीले-पीले सरसों के फूल खिले हैं, नवल अवनी पर
सुषमा अलौकिक धरती की, मोह रही हर मन

सुगंध बिखरी है
भीनी-भीनी मदमस्त हवा की
गुनगुन धूप सुहानी झर रही गगन से
उजली रश्मियों सी
प्यार ही प्यार चहुँ दिशि
"आनंद" की अलख जगाए
भाग्य हमारे उत्तम
नैना यह सुंदर दृश्य देख पाएX
 
जीवन की संजीवनी ज्योति सुरभित होती
पर्यावरण मुस्कुराता
बच्चा, बूढ़ा हर प्राणी, बसंत ऋतु के गुण गाता
होली के त्यौहार की अगुवाई करता, ऋतु राज बसंत
हर्षोल्लास स्फुटित हो जाता
हर प्राणी के तन मन आनंद जीवंत

मोनिका डागा  "आनंद"
१ मार्च २०२४
   

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